घर में धूप देने के चमत्कारिक फायदे
हम जानते हैं की हिन्दू धर्म में घर में धूप और दीप देने का प्राचीनकाल से ही प्रचलन रहा है। हिन्दू धर्म में कई प्रकार से धूप दी जाती है। इस लेख में आओ हम जानते हैं कि धूप देना क्या है और यह कैसे दी जाती है। धूप के प्रकार और लाभ- कुछ पंडितो का कहना है की- तंत्रसार के अनुसार अगर, तगर, कुष्ठ, शैलज, शर्करा, नागरमोथा, चंदन, इलाइची, तज, नखनखी, मुशीर, जटामांसी, कर्पूर, ताली, सदलन और गुग्गुल ये सोलह प्रकार के धूप माने गए हैं। इसे षोडशांग धूप कहते हैं। इनकी धूनी देने से आकस्मिक दुर्घटना नहीं होती है। ओर कुछ का कहना है की – मदरत्न के अनुसार चंदन, कुष्ठ, नखल, राल, गुड़, शर्करा, नखगंध, जटामांसी, लघु और क्षौद्र सभी को समान मात्रा में मिलाकर जलाने से उत्तम धूप बनती है। इसे दशांग धूप कहते हैं। इस धूप को देने से घर में शांति रहती है। ओर इसके अलावा भी अन्य स्थानों पर अन्य मिश्रणों का भी उल्लेख मिलता है जैसे- छह भाग कुष्ठ, दो भाग गुड़, तीन भाग लाक्षा, पांचवां भाग नखला, हरीतकी, राल समान अंश में, दपै एक भाग, शिलाजय तीन लव जिनता, नागरमोथा चार भाग, गुग्गुल एक भाग लेने से अति उत्तम धूप तैयार होती है। रुहिकाख्य, कण, दारुसिहृक, अगर, सित, शंख, जातीफल, श्रीश ये धूप में श्रेष्ठ माने जाते हैं।ओर कुछ जगहों पर उल्लेख है की – भोजन करने के पूर्व कुछ मात्रा में भोजन को अग्नि को समर्पित करने से वैश्वदेव यज्ञ पूर्ण हो जाता है। यह भी एक प्रकार की धूप है। आगे हम जानेंगे की धूप कैसे और किस प्रकार देते हैं
पितरों, देवताओं और क्षेत्रज्ञ को तथा वास्तु अर्थात हमारे घर के वातारवण को शुद्ध करने के लिए धूप देते हैं। धूप उपर बताए अनुसार सामग्री को मिलाकर धूप बनाई जाती है फिर उसे जलाकर धूप दी जाती है। धूप को लकड़ी पर या कंडे पर रखकर जलाया जाता है। लेकिन वर्तमान में सामान्य तौर पर धूप दो तरह से ही दी जाती है। पहला गुग्गुल-कर्पूर से और दूसरा गुड़-घी मिलाकर जलते कंडे पर उसे रखा जाता है।
1.गुड़ और घी की धूप:-
सर्वप्रथम एक कंडा जो की अगर गाय के पंचगव्य से निर्मित हो तो अति उत्तम है उसे जलाएं। फिर कुछ देर बार जब उसके अंगारे ही रह जाएं तब गुड़ और घी बराबर मात्रा में लेकर उक्त अंगारे पर रख दें और उसके आस-पास अंगुली से जल अर्पण करें। अंगुली से देवताओं को और अंगूठे से अर्पण करने से वह धूप पितरों को लगती है हम अपने अगले लेख में जानेंगे की देवताओं को प्रसन्न करने हेतु कोन सी धुनी दी जाती है और कैसे दी जाती है
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